history of veer Shivaji Maharaj

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 में पुणे जिले में स्थित शिवनेरी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता जी का नाम शाहजीराजे भोसले तथा इनकी माता का नाम जीजाबाई भोसले था जिन्हें उनके उपनाम जीजामाता के नाम से भी जाना जाता था।
इनके पिता एक महान सेनानायक थे। उन्होनें मराठा  साम्राज्य की स्थापना की। ऐसा माना जाता है कि इनके पिता जी ने अलग-अलग समय पर अहमदनगर सल्तनत, बीजापुर सल्तनत, और मुगल साम्राज्य में सैन्य सेवाएँ की थी। छत्रपति शिवाजी एक बहुत ही शक्तिशाली राजा और एक महान रणनीतिकार भी थे। शिवाजी ने 1674 से 1680 के मध्य शासन किया था। मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी।

छत्रपति शिवाजी महाराज को भारतीय गणराज्य का महानायक और मराठा साम्राज्य का गौरव भी माना जाता है। शिवाजी महाराज अत्यंत बुद्धिमानी, शौर्य, निडर, सर्वाधिक शक्तिशाली, बहादुर और एक बेहद कुशल शासक भी माने जाते हैं। उन्होंने अपने कौशल और योग्यता के बल पर मराठों को संगठित कर मराठा साम्राज्य की स्थापना पश्चिम भारत में वर्ष 1674 ई. में की थी।


पूरा नाम (Name)शिवाजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज)
जन्म (Birthday)19 फ़रवरी 1630 (Shiv)Jayanti)
जन्मस्थानशिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र
मृत्यु (Death)3 अप्रैल 1680, महाराष्ट्र
पिता का नाम (Father Name) का नाम (Father Name)शाहजीराजे भोंसले
माता का नाम (Mother Name)जीजाबाई
शादी (Wife Name)सईबाई निम्बालकर

पुत्र-पुत्री (Childrens)

संभाजी,

राजाराम,

सखुबाई,

रानुबाई,

राजकुंवरबाई,

दिपाबाई,

कमलाबाई,

अंबिकाबाई।

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक
(Rajyabhishek)6 जून, साल 1674 को रायगढ़ किले पर
17 वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के विघटन का सूत्रपात आरंभ हो गया। इससे स्वतंत्र राज्यों का विभिन्न क्षेत्रों में उदय हुआ। उनमें राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली राज्य मराठा राज्य था। जिसकी स्थापना शिवाजी ने की थी।

मराठों के उत्कर्ष में मराठा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, औरंगजेब की हिंदू विरोधी नीतियों के फलस्वरूप हिंदू जागरण, मराठा संत कवियों का धार्मिक आंदोलन आदि महत्वपूर्ण कारक थे।

मराठों के मूल प्रवेश के संदर्भ में आधुनिक इतिहासकारों का मत है कि मराठे आर्य तथा द्रविणों के मिश्रण थे। आजकल जिस प्रदेश को महाराष्ट्र कहा जाता है, मध्य युग में उसमें पश्चिमी समुद्र तट का कोंकण प्रदेश, खानदेश तथा बरार का आधुनिक प्रदेश, नागपुर क्षेत्र, दक्षिण का कुछ हिस्सा तथा निजाम के राज्य का एक तिहाई भाग था। यह भू छेत्र मराठवाड़ा कहलाता था, जो कालांतर में महाराष्ट्र कहलाने लगा।

मराठा राज्य के संस्थापक शिवाजी का जन्म 1627 ईस्वी को पूना के निकट शिवनेर में हुआ था। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले बीजापुर राज्य की सेवा में नियुक्त थे, शिवाजी की माता जीजाबाई यादव परिवार की राजकुमारी थी।

शिवाजी के गुरु समर्थ स्वामी रामदास थे। शिवाजी ने 19 वर्ष की आयु में 1646 ईसवी में कुछ मवाली लोगों का एक दल बनाकर पूना के निकट स्थित तोरण के दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। शिवाजी ने 1646 ईस्वी में ही बीजापुर के सुल्तान से रायगढ़, चाकन तथा 1647 ईस्वी में बारामती, इंद्रपुर, सिंहगढ़ तथा पुरंदर का दुर्ग भी छीन लिया था।

शिवाजी ने 1656 में कोंकण में  कल्याण और जावली का दुर्ग भी अधिकृत कर लिया था। 1656 ईस्वी में ही शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ बनाई थी। 1657 ईस्वी में शाहजहां के शासनकाल में शिवाजी का मुकाबला पहली बार मुगलों से हुआ,  जब दक्षिण के सूबेदार औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण किया और बीजापुर ने  मुगलों के विरुद्ध शिवाजी से सहायता मांगी।

शासनावधि1674 – 1680
राज्याभिषेक6 जून 1674पूर्ववर्तीशाहजीउत्तरवर्तीसम्भाजी
जन्म19 फरवरी 1630शिवनेरी दुर्ग
निधन3 अप्रैल 1680
रायगढ़समाधि

रायगढ़

संतानसम्भाजी, राजाराम, राणुबाई आदि.घरानाभोंसलेपिताशाहजीमाताजीजाबाई

औरंगजेब ने 1665 ईस्वी  में आमेर के राजा जयसिंह को शिवाजी को नियंत्रित करने को भेजा। राजा जयसिंह एक चतुर कूटनीतिज्ञ था उसने शिवाजी के अधिकांश शत्रुओं को अपनी ओर मिलाकर शिवाजी के किलों पर अधिकार कर लिया।

अंततः शिवाजी को जून 1665 ईस्वी में राजा जयसिंह के साथ संधि करनी पड़ी जो “पुरंदर की संधि” के नाम से जानी जाती है। इस संघ के अनुसार शिवाजी ने अपने कुल 35 दुर्गों में से 23 दुर्ग मुगलों को सौंप दिया और शिवाजी के बड़े पुत्र संभाजी को मुगल दरबार से पांच हज़ारी मनसबदार बनाया गया।

कूटनीति के तहत राजा जयसिंह द्वारा शिवाजी को आगरा स्थित मुगल दरबार में उपस्थित होने के लिए भी आश्वस्त किया गया, राजा जयसिंह ने उनसे कहा कि उन्हें दक्षिण के मुगल सूबों  का सूबेदार बना दिया जाएगा। शिवाजी मई 1666 ईस्वी में मुगल दरबार में उपस्थित हुए, जहां उनके साथ तृतीय श्रेणी के मनसबदारों की भाँति व्यवहार किया गया और उन्हें नजरबंद भी कर दिया गया।

लेकिन नवंबर 1666 एचडी में ही वे अपने पुत्र संभाजी के साथ मुगलों की कैद से भाग निकले। अंततः विवस होकर 1668 ईस्वी में औरंगजेब ने शिवाजी के साथ संधि कर ली और शिवाजी को राजा की उपाधि एवं बराबर की जागीर प्रदान की। तत्पश्चात 1674 एचडी में शिवाजी ने रायगढ़ के दुर्ग में महाराष्ट्र के स्वतंत्र शासक के रूप में अपनाराजयभिषेक भी कराया और “छत्रपति” की उपाधि भी धारण की।

1677 ईस्वी में कर्नाटक अभियान के दौरान शिवाजी ने जिंजी, मदुरई, बेल्लूर आदि  तथा कर्नाटक, तमिलनाडु के लगभग 100 दुर्गों को जीत लिया था। 12 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई।

शिवाजी महाराज का जन्म और मृत्यु और परिवार / Shivaji Maharaj Family History

शिवाजी महाराज पुणे के जुत्रार गांव के शिवनेरी दुर्ग में 19 फरवरी, 1630 में जन्मे थे। हालांकि इनकी जन्म की तारीख को लेकर कई मतभेद भी हैं।

भारत के वीर और महान सपूत शिवाजी महाराज का वास्तविक और असली नाम शिवाजी भोसले था, जो कि माता शिवाई के नाम पर रखा था, क्योंकि उनकी माता जीजाबाई शिवाई देवी की परम भक्त थी।

शिवाजी महाराज के पिता का नाम शाहजीराजे भोसलें था, वह बीजापुर के सुल्तान, आदिलशाह के दरबार में सैन्य दल के सेनापति और एक साहसी योद्धा थे, जो कि उस वक्त दख्खन के सुल्तान के हाथों में था।

उन्हें अपनी पत्नी जीजाबाई से 8 संतानों की प्राप्ति हुई थी, जिनमें से 6 बेटियां और 2 बेटे थे उन्हीं में से एक शिवाजी महाराज थे।

ऐसा कहा जाता है कि शाहजी राजे भोसले ने पत्नी जीजाबाई और पुत्र शिवाजी महाराज के सुरक्षा की और उनकी देखरेख की जिम्मेदारी दादोजी कोंडदेव इनके मजबुत कंधो पर छोड़ी थी, और सेनापति की अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए कर्नाटक चले गए थे। वहीं कोंडदेव जी ने शिवाजी महाराज को हिन्दू धर्म की शिक्षा देने के साथ-साथ युद्ध कला, घुड़सवारी और राजनीति के बारे में बहुत कुछ सिखाया था और इसके बाद जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी का लालन-पालन किया। इसलिए शिवाजी अपने माता के बेहद करीब थे।

जीजाबाई की बदौलत ही शिवाजी को एक वीर, कुशल और पराक्रमी प्रशासक बनने में मदत मिली थी, उनकी मां ने बचपन से ही उनके अंदर राष्ट्रभक्ति और नैतिक चरित्र के ऐसे बीज बो दिए थे, जिसकी वजह से शिवाजी महाराज अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल करने में सफल होते चले गए और कई दिग्गज मुगल निजामों को पराजित कर मराठा साम्राज्य की नींव रखी।

इसके अतिरिक्त अपनी माता जीजाबाई से हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण और महाभारत की कहानियां सुनकर ही शिवाजी महाराज के अंदर मर्यादा, धैर्य और धर्मनिष्ठा जैसे गुणों का अच्छे से विकास हुआ था।

राष्ट्रमाता जीजाबाई के वीर पुत्र के रुप में शिवाजी महाराज – Shivaji Maharaj

छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई एक बेहद साहसी, राष्ट्रप्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, उन्होंने अपने वीर पुत्र शिवाजी के अंदर बचपन से ही राष्ट्रप्रेम और नैतिकता की भावना कूट-कूट कर भरी थी।

इसके साथ ही उन्होंने शिवाजी महाराज को समाज के कल्याण के प्रति समर्पित रहने और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना का विकास किया था।

यही नहीं राष्ट्रमाता जीजाबाई ने अपने बुद्धिजीवी पुत्र की क्षमता को समझ कर उन्हें हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण और महाभारत की वीरता की कहानियां सुनाई, जिससे उनके अंदर मर्यादा, धैर्य, वीरता और धर्मनिष्ठा जैसे गुणों का भलिभांति संचार हुआ।

इसके अलावा उन्होंने शिवाजी महाराज को नैतिक संस्कारों की शिक्षा भी दी। शिवाजी महाराज के अंदर मुगल शासकों से महाराष्ट्र को आजाद करवाने की प्रबल इच्छा उनकी माता जीजाबाई ने की प्रकट की थी।

यही नहीं जीजाबाई ने ही अपने प्रिय और वीर पुत्र शिवाजी महाराज को आत्मरक्षा, तलवारबाजी, भाला चलाने की कला और युद्ध कला की शिक्षा देकर उन्हें युद्धकला में निपुण बनाया। छत्रपति शिवाजी अपनी माता जीजाबाई से अत्यंत प्रभावित थे, उन्होंने अपनी मां जीजाबाई के मार्गदर्शन से ही मराठा साम्राज्य और हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की थी।

इसके साथ ही एक महान और परमवीर शासक की तरह ही अपने नाम का सिक्का चलवाया। वहीं आपको बता दें कि मराठा साम्राज्य के महान शासक शिवाजी महाराज अपनी जीवन की सभी कामयाबियों का श्रेय अपनी माता जीजाऊ को ही देते थे।

शिवाजी महाराज के विचार / कथन – Shivaji Maharaj Jayanti Quotes

“शत्रु को कमजोर ना समझो, तो अत्याधिक बलिष्ठ समझकर डरना भी नहीं चाहिये।”

“सर्वप्रथम राष्ट्र, फिर गुरु, फिर माता पिता, फिर परमेश्वरअतः पहले खुद को नहीं राष्ट्र को देखना चाहिये।”

“जब हौसले बुलंद हो, तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढेर लगता है।”

“नारी के सभी अधिकारो मे सबसे महान अधिकार माँ बनने का होता।”

“आत्मबल सामर्थ्य देता है, और सामर्थ्य विद्या प्रदान कराता है।विद्या स्थिरता प्रदान कराती है, और स्थिरता विजय की तरफ ले जाती है।”

“जरुरी नही है के विपत्ती का सामना, दुश्मन के सम्मुख से ही करने मे विरता हो। विरता तो विजय मे है।”

“प्रतिशोध मनुष्य को जलाती रहती है,संयम ही प्रतिशोध को काबू करने का उपाय होता है।”

“जो धर्म,सत्य,श्रेष्ठता और परमेश्वर के सामने झुकता है, उसका आदर समस्त संसार करता है।”

“जीवन मे सिर्फ अच्छे दिनो की आशा नही रखनी चाहिये,क्योंकी दिन और रात की तरह अच्छे दिनो को भी बदलना पडता है।”

“अंगूर को जबतक ना पेरो वो मिठी मदिरा नही बनती,वैसे ही मनुष्य जब तक कष्टों मे पिसता नही, तब तक उसके अंदर की सर्वोत्तम प्रतिभा बाहर नही आती।”

“एक सफल मनुष्य अपने कर्तव्य की पराकाष्ठा के लिये,समुचित मानव जाती के चुनौती को स्वीकार कर लेता है।”

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